पुराणों में आई कथाओं के अनुसार ऎसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी। लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु का वरण कर लिया। इससे ज्येष्ठा नाराज हो गई। तब श्रीविष्णु ने उन अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष और वास स्थान पीपल के वृक्ष में रहने का ओदश दिया और कहा कि यहाँ तुम आराधना करो। मैं समय-समय पर तुमसे मिलने आता रहूँगा एवं लक्ष्मीजी ने भी कहा कि मैं प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करूँगी।
शनिवार को श्रीविष्णु और लक्ष्मीजी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं। इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
शनि-शिग्नापुर
महाराष्ट्र में शिरडी के पास शिग्नापुर में शनिदेव का प्रसिद्ध मंदिर है। कहते हैं- बहुत पहले एक काली शिला बहती हुई इस गाँव की नदी में आ गई। खेलते हुए बच्चों ने जब इसे लकडी के टुकडे से खींचना चाहा तो शिला में से खून बहने लगा। बच्चों ने गाँव वालों को बुलाया। सभी ने शिला को उठाने का प्रयास किया परंतु सफल नहीं हो सके। रात को एक व्यक्ति को स्वप्न में किसी दिव्य आवाज ने कहा कि जब कोई मामा-भांजा इस शिला को उठाएंगे तो ही सफल होंगे। गाँव वालों ने ऎसा ही किया और एक चबूतरे पर शिला की स्थापना की। शनिदेव की कृपा से आज तक कोई भी इस गाँव में कोई भी ताला नहीं लगाता। आज तक यह शिला खुले मे उस चबूतरे पर ही है और इसके ऊपर मंदिर बनाने के सारे प्रयास विफल रहे हैं।
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