चौ़डा ललाट अच्छे भाग्य की निशानी माना जाता है तथा उन्नत चौ़डा ललाट बृहस्पति देव का ही विषय क्षेत्र है। जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर बृहस्पतिदेव का अधिकार है, जैसे- शिक्षा, विवाह, संतान, धर्म, धन, परोपकार, जीवन के इन पक्षों से संतुष्ट व्यक्ति नि:संदेह भाग्यशाली होगा। एक महत्वपूर्ण ग्रंथ के श्लोक में वर्णित है कि ब्रह्मा ने कष्ट एवं दु:ख के भवसागर को पार करने के लिए बृहस्पति और शुक्र नामक दो चप्पू बनाए। इनकी सहायता से व्यक्ति दोष रूपी समंदर को पार करके दूसरे किनारे पहुंच सकता है, जहाँ शुभ कर्म हैं अत: सात्विक गुणों के प्रदाता बृहस्पतिदेव ही हैं। जिन व्यक्तियों पर बृहस्पतिदेव की कृपा एवं प्रभाव होता है, वे परोपकारी, कर्तव्यपरायण, संतुष्ट एवं कानून का पालन करने वाले होते हैं।
बृहस्पति को धनु एवं मीन राशियों का स्वामित्व प्राप्त है यह दोनों राशियाँ बृहस्पति के दो रूपों का आरेखन करती है। धनुष-बाण से लक्ष्य साधता धनुर्धर, आत्मविश्वास, आशावाद और लक्ष्य भेदन की क्षमता का प्रतीक है, तो जल में विचरण करती मीन शांत परंतु सतत कार्यशीलता, आसानी से प्रभावित न होने एवं पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। पाराशर जी ने बृहस्पति देव का चित्रांकन एक धीर, गंभीर, चिंतक एवं ज्ञान के अतुल भंडार के रूप में किया। बृहस्पति को देवताओं के गुरू, आचार्य एवं पुरोहित का स्थान प्राप्त है, जो उन्हें सही सलाह देते हैं, भटकने से बचाते हैं, अपने संस्कारों के विरूद्ध नहीं जाने देते और समय-समय पर वेद, शास्त्र एवं ज्ञान से परिचय कराते हैं। यही बृहस्पतिदेव का मुख्य कारकत्व है। जन्मपत्रिका में शुभ बृहस्पति गुरू का दर्जा दिलाते हैं। ऎसा गुरू जो सही राह दिखलाता है, संस्कारों से जु़डे रहने की शिक्षा देता है, जिसके शब्दों में इतनी गहराई और सार होता है कि सभी विश्वास करने पर विवश हो जाते हैं। ज्ञान, ध्यान, आध्यात्म, तीर्थ यात्रा का सुख यह सभी बृहस्पति देव की कृपा से ही संभव है।
भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर बृहस्पति को देवगुरू एवं ग्रह के रूप में प्रतिष्ठा दी। भगवान शिव ही नीति, धर्म, वेद आदि के स्त्रोत हैं। पुराणों में वर्णन है कि सृष्टि की रचना के समय ब्रह्माजी ने जिस नीतिशास्त्र को रचा था, उसे भगवान शिव ने ग्रहण कर संक्षिप्त किया। तत्पश्चात् उसे देवराज इन्द्र ने, भगवान शंकर से ग्रहण कर इस शास्त्र का संक्षिप्तिकरण किया और पुन: बृहस्पति ने इस शास्त्र को अधिक संक्षिप्त किया, जो बार्हस्पत्य नीतिशास्त्र के नाम से विख्यात हुआ। ज्योतिष में बृहस्पति को सप्तम के अलावा पंचम और नवम दृष्टि भी प्राप्त है। ऎसा इसलिए है कि बृहस्पति मंत्री हैं इसलिए अच्छी शिक्षा व धर्म के रक्षार्थ इन भावों पर उनकी पूर्ण दृष्टि आवश्यक है अत: धर्म एवं नीति बृहस्पति देव के ही विषय हैं। महाभारत में युधिष्ठिर को धर्म तत्व का रहस्य बताते हुए जो देवगुरू बृहस्पति ने कहा है, वह इस पृथ्वी पर शांति स्थापित करने का एकमात्र साधन है।
यद्यपि ज्योतिष में वाणी का कारक बुध ग्रह को माना गया है परंतु व्याख्यान शक्ति बृहस्पति से ही आती है। ज्योतिष ग्रंथों में उल्लेख है कि बुध के बली होने से वाणी अच्छी होगी परंतु सारगर्भित वाणी के लिए बृहस्पति का बली होना भी आवश्यक है। यदि बुध बली हों परंतु बृहस्पति बली न हों तो व्यक्ति अधिक परंतु अनर्गल बोलता है। उत्तर कालामृत के रचयिता कवि कालिदास ने लिखा है कि सभा को आमोदित करना बृहस्पति का कारकत्व है। अत: पाण्डित्य एवं शास्त्र पूर्ण वाणी जन्म कुण्डली में बली बृहस्पति ही प्रदान कर सकते हैं। महाभारत में भीष्म पितामह ने देवगुरू बृहस्पति को वाणी, बुद्धि एवं ज्ञान के अधिष्ठाता तथा महान परोपकारी बताया है।
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