![]() शनिदेव के अशुभ प्रभावों की शांति हेतु लोहा धारण किया जाता है किन्तु यह लौह मुद्रिका सामान्य लोहे की नहीं बनाई जाती। काले घोडे की नाल (घोडे के पैरों खुरों में लोहे की अर्धचन्द्राकार वस्तु पहनाई जाती है, जो घोडे के खुरों को मजबूत बनाये रखती है, घिसने नहीं देती, वही नाल होती है), जो नाल स्वत: ही घोडे के पैरों से निकल गयी हो, उस नाल को शनिवार को सिद्घ योग ( शनिवार और पुष्य, रोहिणी, श्रवण नक्षत्र हो अथवा चतुर्थी, नवमी या चतुर्दशी तिथि हो) में प्राप्त की जाती है और फिर इसका उपयोग विविध प्रकार से किया जाता है। व्यापार वृद्घि : व्यापार वृद्घि के लिए घोडे की नाल को शनिवार को प्राप्त कर, उसका शुद्घिकरण करके, धूप-दीप दिखाकर व थोडा सिंदूर लगाकर, व्यापारिक प्रतिष्ठान में ऎसी जगह लगाया जाता है, जहाँ से प्रत्येक ग्राहक को वह स्पष्ट दिखाई देेवे। नाल को इस प्रकार लगाया जाता है कि उसका खुला भाग ऊपर की ओर रहे। प्रतिदिन इस नाल पर धूप का आघ्राप किया जाता है। आगे जब कभी शनिवार को सिद्घि योग पडे तो उस दिन इस नाल पर तिल्ली के तेल में सिंदूर मिलाकर लेप किया जाता है। स्वास्थ्य वृद्घि व अनिष्ट शाति : घोडे की नाल प्राप्त करके, उस नाल को कटवाकर, उसकी गोल छल्लेनुमा अंगूठी बना ली जाती है। इस अंगूठी को गंगाजल और गोमूत्र से धोकर, थोडा सिंदूर लगाकर, शनिदेव के मंत्र का, कम से कम 108 बार जाप करके, धूप-दीप दिखाकर शनिवार को ही सीधे हाथ की मघ्यमा (बीच की बडी) अंगुली में पहन लिया जाता है। इस अंगूठी के धारण करने से शनिदेव जनित अनिष्ट कम हो जाते हैं और स्वास्थ्य में वृद्घि होती है, आय में वृद्घि होती है, मानसिक उद्वेग शांत हो जाता है। |
Tuesday, April 27, 2010
काले घोडे की नाल
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