Sunday, September 18, 2011

जब भी मंदिर जाएं, जरूर करें ऐसे प्रणाम

शास्त्रों के अनुसार सुख हो दुख हर पल भगवान का ध्यान करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, जो कि हमारे कई जन्मों पापों को नष्ट कर देता है। आजकल की भागती-दौड़ती जिंदगी में बहुत कम लोग हैं जिन्हें विधिवत भगवान की पूजा-आराधना का समय मिल पाता है। ऐसे में भगवान की पूजा के लिए सभी मंदिर जाते हैं और केवल हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं। जबकि भगवान के सामने साष्टांग प्रणाम करने पर आश्चर्यजनक शुभ फल प्राप्त होते हैं।

भगवान को साष्टांग प्रणाम करना, केवल एक परंपरा या बंधन नहीं है। इस परंपरा के पीछे विज्ञान भी है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ा है। साष्टांग प्रणाम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारे शरीर का व्यायाम होता है। साष्टांग प्रणाम की बहुत ही सामान्य विधि हैं। इसके लिए भगवान के सामने आराम से बैठ जाएं और फिर धीरे-धीरे पेट के बल जमीन पर लेट जाएं। दोनों हाथों को सिर के आगे ले जाकर जोड़कर नमस्कार करें। इस प्रणाम से हमारे सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं, इससे भी स्ट्रेस दूर होता है। इसके अलावा झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य और आंखों के लिए लाभप्रद होता है। प्रणाम करने की यही विधि सबसे ज्यादा फायदेमंद है। इसका धार्मिक महत्व काफी गहरा है ऐसा माना जाता है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है। भगवान के प्रति हमारे मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार स्वत: ही खत्म होता है। जब भगवान के समक्ष हम तन और मन समर्पण कर देते हैं तो यह अवस्था निश्चित ही हमारे मन को असीम शांति प्रदान करती हैं। इसके अलावा इस प्रकार प्रणाम करने से हमारे जीवन की कई समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं।

क्यों होते हैं पहाड़ों पर देवी के मंदिर?

जम्मू में वैष्णव देवी हो या हरिद्वार में मनसा देवी, अधिकतर माता मंदिरों का स्थान पहाड़ ही होते हैं। इसीलिए देवी का एक नाम पहाड़ोंवाली भी है। कई बार हमारे मन में भी यह सवाल उठता है कि आखिर माता के पुराने मंदिर अधिकतर पहाड़ों पर ही क्यों होते हैं? क्या इन पहाड़ों से माता का कोई संबंध है? या पौराणिक काल में कोई परंपरा रही होगी। इसका जवाब बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर माता जमीन पर मैदानी इलाकों की बजाय पहाड़ों पर को विराजित हैं। 

वास्तव में इन पहाड़ों और पूरी धरती से माता का संबंध बहुत गहरा है। हमारे वेद-पुराणों में को प्रकृति के पांच कारक तत्व माने गए हैं वे हैं जल, अग्रि, वायु, धरती और आकाश। इन पांचों के एक-एक अधिपति देवता हैं क्रमश: गणेश, सूर्य, शिव, शक्ति और विष्णु। धरती यानी पृथ्वी की अधिपति शक्ति यानी देवी हैं। 

शेष चारों प्रमुख देवता हैं। शक्ति यानी दुर्गा को संपूर्ण धरती की अधिष्ठात्री माना गया है। वे शक्ति का रूप हैं। एक तरह से मानें तो वे पृथ्वी की राजा हैं। भारतीय मनीषियों ने पहाड़ों को पृथ्वी का मुकुट और सिंहासन माना है। माता इस संपूर्ण सृष्टि की अधिनायक हैं, इसलिए वे सिंहासन पर विराजित हैं। 

जल से हमारी संस्कृति और सभ्यता का आरंभ हुआ जिसे पृथ्वी ने पूर्ण पोषण दिया। पृथ्वी हमारी मां हैं, इसलिए इसकी अधिष्ठाता कोई देव न होकर देवी हैं। यही एक कारण है कि लगभग सभी महत्वपूर्ण और प्राचीन देवी मंदिर पहाड़ों पर ही स्थित हैं।

इन पांच चीजों का चमत्कारी धुआं, घर में नेगेटिव को बना देगा पॉजीटिव

यदि किसी घर-परिवार में अक्सर परेशानियां बनी रहती हैं। परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार या अस्वस्थ रहता है। धन संबंधी परेशानियां बनी रहती है। छोटे-छोटे कार्य भी बड़ी कठिनाई से पूर्ण होते हैं। तब संभव है कि उस घर में कोई वास्तु दोष हो, कोई नकारात्मक शक्ति सक्रिय हो। इस प्रकार के अशुभ प्रभावों से मुक्ति पाने के लिए यह उपाय अपनाएं।

वास्तु संबंधी दोषों को दूर करने और घर के वातावरण में फैली नकारात्मक ऊर्जा को प्रभावहीन करने के लिए वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाना चाहिए। इसके लिए सुबह-सुबह घर में लोबान, गुग्गल, कपूर, देशी घी एवं चंदन का चूरा एक साथ मिलाकर गाय के कंडे पर धूनी दें। पूरे घर में इस धूनी का धुआं फैलाएं। इसके प्रभाव से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां प्रभावहीन हो जाएंगी और सकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ेगा।

यह सभी पांचों सामग्रियां पवित्र मानी गई हैं। पूजन-कर्म में इनका विशेष महत्व होता है। यह सभी वस्तुएं घर के आसपास के क्षेत्र को पूरी तरह पवित्र बना देती हैं। ऐसा करने पर देवी-देवताओं की विशेष कृपा परिवार पर रहती है और सदस्यों के कार्य समय पर पूर्ण होते हैं। धन संबंधी परेशानियों का नाश होता है। साथ ही बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है।

इस टोटके से आप हो जाएंगे मालामाल

तंत्र शास्त्र में धन प्राप्ति के कई टोटके बताए गए हैं। इन टोटकों को करने से धन आदि सभी सुखों की प्राप्ति होती है। धन प्राप्ति का ऐसा ही एक अचूक टोटका इस प्रकार है-

टोटका

शुक्ल पक्ष के किसी शुक्रवार के दिन सुबह नहाकर साफ वस्त्र धारण करें और अपने सामने इस दक्षिणावर्ती शंख को रखें। शंख पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जप करें। मंत्र जप के लिए स्फटिक की माला का प्रयोग करें।

मंत्र

ऊँ श्रीं ह्रीं दारिद्रय विनाशिन्ये धनधान्य समृद्धि देहि देहि नम:

इस मंत्रोच्चार के साथ-साथ एक-एक चावल इस शंख के मुंह में डालते रहें। चावल टूटे न हो इस बात का ध्यान रखें। इस तरह रोज एक माला मंत्र जप करें। यह प्रयोग 30 दिन तक करें। पहले दिन का जप समाप्त होने के बाद शंख में चावल रहने दें और दूसरे दिन एक डिब्बी में उन चावलों को डाल दें। इस तरह एक दिन के चावल दूसरे दिन उठाकर डिब्बे में डालते रहें।।

30 दिन बाद जब प्रयोग समाप्त हो जाए तो चावलों व शंख को एक सफेद कपड़े में बांधकर अपने पूजा घर में, फैक्ट्री, कारखाने या ऑफिस में स्थापित कर दें। इस प्रयोग से आपके घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होगी।

Friday, September 09, 2011

देवी दुर्गा



देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है। दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का। ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं। यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में ध्यान शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है।

अगर आप भी जीवन में ऐसी मुश्किलों का सामना करें तो यहां बताए जा रहे देवी दुर्गा गायत्री के दिव्य मंत्र का स्मरण जरूर करें। यथासंभव प्रात: देव उपासना के दौरान देवी दुर्गा की पूजा कर नीचे लिखा दुर्गा गायत्री मंत्र बोलें-

- शुक्रवार या नवमी को स्नान के बाद देवी दुर्गा की प्रतिमा की पंचोपचार पूजा करें। जिसमें कुंकूम, चंदन, अक्षत, गुड़हल के फूल, लाल वस्त्र, सुपारी, कलेवा,  फल, दक्षिणा चढ़ाकर देवी को तिल या गुड़ या इससे बने पकवानों का भोग लगाएं।

- पूजा के बाद लाल आसन पर बैठ स्फटिक माला से या मन ही मन नीचे लिखे दुर्गा गायत्री मंत्र का पाठ यथाशक्ति अधिक से अधिक बार या 108 बार संकटमोचन और भय-बाधा से मुक्ति की कामना के साथ करें -

ॐ गिरिजायै विद्महे, 

शिव प्रियायै धीमहि,

तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।।

- पूजा व मंत्र जप के बाद देवी आरती धूप, दीप व कर्पूर से करें। अपने दोषों की क्षमा मांग व प्रसाद ग्रहण करें।

श्वेतार्क गणपति



भगवान गणेश अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। गणेशोत्सव के अंतर्गत यदि कुछ साधारण उपाय किए जाएं तो हर कामना पूरी हो सकती है। 1 सितंबर से प्रारंभ हुआ गणेशोत्सव 11 सितंबर तक रहेगा। इन दिनों में यदि नीचे लिखा उपाय करेंगे तो अवश्य धन लाभ होगा।

उपाय

गणेशोत्सव के दौरान(1 सितंबर से 11 सितंबर) घर में श्वेतार्क गणपति अर्थात आंकड़े के गणेश की स्थापना करें व उन्हें प्रतिदिन लड्डू का भोग लगाएं। इसके बाद लाल चंदन की माला से नीचे लिखे मंत्र का 11 माला जप करें। यह क्रम निरंतर जारी रखें।

मंत्र

ऊँ नमो सिद्धिविनायकाय सर्वकार्यकत्र्रे सर्वविघ्नप्रशमनाय

सर्वराज्यवस्यकरणाय सर्वजनसर्वस्त्रीपुरुषाकर्षणाय श्रीं ऊँ स्वाहा



आपके देखेंगे कि कुछ ही समय में पैसे से संबंधित आपकी हर समस्या दूर जाएगी ।

Sunday, July 03, 2011

श्री लक्ष्मी द्वादशनाम स्तोत्रम्

देवी लक्ष्मी की जिस पर कृपा हो जाए उस व्यक्ति को जीवन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती। पैसा, इज्जत, शोहरत सभी कुछ उसके पास होता है। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्र, स्तुति व श्लोकों की रचना कई गई है। इन्हीं में श्री लक्ष्मी द्वादशनाम स्तोत्रम् भी एक है।

इस स्त्रोत का प्रतिदिन जप करने से मां लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है और साधक को मनचाहा फल प्रदान करती है। यह स्तुति इस प्रकार है-



श्री लक्ष्मी द्वादशनाम स्तोत्रम्



ईश्वरीकमला लक्ष्मीश्चलाभूतिर्हरिप्रिया।

पद्मा पद्मालया संपत् रमा श्री: पद्मधारिणी।।

द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत्।

स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तस्य पुत्रदारादिभिस्सह।।



जप विधि

- सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर देवी लक्ष्मी का पूजन करें। उन्हें लाल गुलाब के फूल अर्पित करें।

- देवी लक्ष्मी की मूर्ति के सामने आसन लगाकर स्फटिक की माला लेकर इस स्त्रोत का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।

- आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।

- एक ही समय, आसन व माला हो तो यह स्त्रोत जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।

चमत्कारिक पौधे

तंत्र प्रयोगों में अनेक वनस्पतियों का भी उपयोग किया जाता है, बांदा भी उन्हीं में से एक है। बांदा एक प्रकार का पौधा होता है जो जमीन पर न उगकर किसी वृक्ष पर उगता है। इस प्रकार यह एक परोपजीवी पौधा है जो किसी अन्य पेड़-पौधे पर उगकर उसी के तत्वों से पोषित होता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार प्रत्येक पेड़ पर उगा बांधा एक विशेष फल देता है। जानते हैं किस पेड़ का बांदा किस कार्य के लिए उपयोगी होता है-

1- बेर का बांदा- बेर के बांदे को विधिवत तोड़ कर लाने के पश्चात देव प्रतिमा की तरह इसको स्नान करवाएं व पूजा करें। इसके बाद इसे लाल कपड़े में बांधकर धारण कर लें। इस प्रकार आप जो भी इससे मांगेंगे वह सब आपको प्राप्त होगा।

2- बरगद का बांदा- यह बांदा बाजू में बांधने से हर कार्य में सफलता मिलती है और कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता।

3- हरसिंगार का बांदा- यह बांदा काफी मुश्किल से मिलता है। यदि हरसिंगार के बांदे को पूजा करने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें तो आपको कभी धन की कमी नहीं होगी।

4- अनार का बांदा- इस बांदे को पूजा करने के बाद घर में रखने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती और न ही भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश होता है।

5- आंवले का बांदा- आंवले का बांदा भुजा में बांधने से चोर, डाकू, हिंसक पशु का भय नहीं रहता।

6- नीम का बांदा- नीम के बांदे को अपने दुश्मन से स्पर्श करा दें तो उसके बुरे दिन शुरु हो जाते हैं।

7- आम का बांदा- इस पेड़ के बांदे को भुजा पर धारण करने से कभी भी आपकी हार नहीं होती और विजय प्राप्त होती है।

गुप्त नवरात्रि में बोलें यह अद्भुत देवी मंत्र

धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्रि देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्रि का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु। जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है।

नवरात्रि के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं। जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है।

यही कारण है कि व्यावहारिक उपाय के साथ धार्मिक उपायों को जोड़कर शास्त्रों में देवी उपासना के कुछ विशेष मंत्रों का स्मरण सामान्य ही नहीं गंभीर रोगों की पीड़ा को दूर करने वाला माना गया है।

इन रोगनाशक मंत्रों का नवरात्रि के विशेष काल में ध्यान अच्छी सेहत के लिये बहुत ही असरदार माना गया है। जानते हैं यह रोगनाशक विशेष देवी मंत्र -

जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।

-  धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि के अलावा हर रोज भी इस मंत्र का यथसंभव 108 बार जप तन, मन व स्थान की पवित्रता के साथ करने से संक्रामक रोग सहित सभी गंभीर बीमारियों का भी अंत होता है। घर-परिवार रोगमुक्त होता है।

इस मंत्र जप के पहले देवी की पूजा पारंपरिक पूजा सामग्रियों से जरूर करें। जिनमें गंध, फूल, वस्त्र, फल, नैवेद्य शामिल हो। इतना भी न कर पाएं तो धूप व दीप जलाकर भी इस मंत्र का ध्यान कर आरती करना भी बहुत शुभ माना गया है।

गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्रि जगतजननी दुर्गा की उपासना से शक्ति और मनोरथ सिद्धि का विशेष काल माना गया है। इस बार यह शुभ काल 2 जुलाई से लेकर 10 जुलाई तक रहेगा। शास्त्रों के मुताबिक संसार में प्राणी, वनस्पति, ग्रह-नक्षत्र सभी में दिखाई देने वाली या अनुभव होने वाली हर तरह की शक्तियां आदिशक्ति का ही स्वरूप है। यह आदिशक्ति ही ब्रह्मरूप है।

वेदों में जगतजननी जगदंबा द्वारा स्वयं कहा गया है कि वह ही पूरे ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री है। इसलिए सभी कर्मफल और सुख-समृद्धि मेरे द्वारा ही प्रदान किए जाते हैं।

अगर आप भी जीवन से जुड़ी इच्छाओं जैसे धन, पद, संतान या सम्मान को पूरा करना चाहते हैं तो यहां बताए जा रहे देवी दुर्गा के एक मंत्र का जप गुप्त नवरात्रि, शुक्रवार, नवमी तिथि पर जरूर करें। यह मंत्र सरल है और पारंपरिक धार्मिक कार्यों में भी स्मरण किया जाता है।

जानते हैं यह मंत्र और देवी उपासना की सरल विधि -

- गुप्त नवरात्रि में सुबह या विशेष रूप से रात्रि में दिन के मुताबिक देवी के अलग-अलग स्वरूपों का ध्यान कर सामान्य पूजा सामग्री अर्पित करें।

- पूजा में लाल गंध, लाल फूल, लाल वस्त्र, आभूषण, लाल चुनरी चढ़ाकर फल या चना-गुड़ का भोग लगाएं। धूप व दीप जलाकर माता के नीचे लिखे मंत्र का नौ ही दिन कम से कम एक माला यानी 108 बार जप करना बहुत ही मंगलकारी होता है -

सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।

- मंत्र जप के बाद देवी की आरती करें और मंगल कामना करते हुए अपनी समस्याओं को दूर करने के लिये मन ही मन देवी से प्रार्थना करें।

गुप्त नवरात्रि:

हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 2 जुलाई, शनिवार) से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ हो रही है, जिसका समापन आषाढ़ शुक्ल दशमी (10 जुलाई, रविवार) को होगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। इनकी आराधना करने से गुप्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इन दिनों किए जाने वाले टोने-टोटके भी बहुत प्रभावशाली होते हैं, जिनके माध्यम से कोई भी मनोकामना पूर्ति कर सकता है। गुप्त नवरात्रि में किए जाने वाले कुछ टोटके इस प्रकार हैं-

1- यदि लड़की के विवाह में बाधा आ रही है तो गुप्त नवरात्रि में पडऩे वाले गुरुवार (इस बार 7 जुलाई) के दिन केले की जड़ थोड़ी काटकर ले आएँ और इसे पीले कपड़े में बांधकर लड़की के गले में बांध दें। शीघ्र ही विवाह हो जाएगा।

2- यदि आपके बच्चे को अक्सर नजर लगती है तो नवरात्रि में हनुमानजी के मंदिर में जाकर हनुमानचालीसा का पाठ करें और दाहिने पैर का सिंदूर बच्चे के मस्तक पर लगाएं। बच्चे को नजर नहीं लगेगी।

3- यदि नौकरी नहीं मिल रही है तो भैरवजी के मंदिर जाकर प्रार्थना करें व नैवेद्य चढ़ाएं। इससे नौकरी से संबंधित आपकी सभी समस्याएं हल हो जाएंगी।

4- शत्रुओं की संख्या बढ़ गई है और उनसे भय लगने लगा है तो नवरात्रि में प्रतिदिन भगवान नृसिंह के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें व पूजन करें।

5- धन प्राप्ति के लिए लक्ष्मी-नारायण के मंदिर में जाकर खीर व मिश्री का प्रसाद चढ़ाएं व शुक्रवार के दिन 9 वर्ष तक की कन्याओं को उनकी पसंद का भोजन कराएं। हो सके तो उन्हें कुछ उपहार भी दें।

6- पीपल के पत्ते पर राम लिखकर तथा कुछ मीठा रखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं। इससे भी धन लाभ होने लगेगा।

7- भगवान शंकर आरोग्य के देवता है। नवरात्रि में उन्हें प्रतिदिन सुबह एक लोटा जल चढ़ाएं और रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें। शीघ्र ही आपके स्वास्थ्य में लाभ होगा।

Wednesday, May 11, 2011

मां बगलामुखी जयंती


देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है। तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को माता बगलामुखी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। इसे मां बगलामुखी जयंती कहते हैं। इस बार यह पर्व 11 मई, बुधवार को है।
आज  दिन (11 मई, बुधवार) साधक को माता बगलामुखी की निमित्त व्रत एवं उपवास करना चाहिए तथा देवी का पूजन करना चाहिए। देवी बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्त के शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों को रोक देती हैं। देवी बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है। इसका कारण है कि इनका रंग सोने के समान पीला है। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।
यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके मुख का तेज इतना हो जाता है कि उससे आँखें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है। आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। सामनेवाले विरोधियों को शांत करने में इस विद्या का अनेक राजनेता अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं। यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो हित होगा। हम यहाँ पर सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँह बंद करने वाली भगवती बगलामुखी की आराधना साधना  दे रहे हैं।
गुरु दिक्षा लेकर मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो वह मंत्र निश्चित रूप से सफलता दिलाने में सक्षम होता है।
इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है । इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) रात्री काल में पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी या हकीक ) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है।
संक्षिप्त साधना विधि, छत्तीस अक्षर के मंत्र का विनियोग ऋयादिन्यास, करन्यास, हृदयाविन्यास व मंत्र इस प्रकार है--

विनियोग

ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः, त्रिष्टुप छंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास-

नारद ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुय छंद से नमः मुखे, बगलामुख्यै नमः, ह्मदि, ह्मीं बीजाय नमः गुहये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, प्रणवः कीलकम नमः सर्वांगे।

हृदयादि न्यास

ऊँ ह्लीं हृदयाय नमः बगलामुखी शिरसे स्वाहा, सर्वदुष्टानां शिरवायै वषट्, वाचं मुखं वदं स्तम्भ्य कवचाय हु, जिह्वां भीलय नेत्रत्रयास वैषट् बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाःआ फट्।

ध्यान

मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेघां
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम्।
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी
देवीं भजामि घृत मुदग्र वैरिजिह्माम ।।

मंत्र इस प्रकार है--

ऊँ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ फट स्वाहा।
मंत्र जाप लक्ष्य बनाकर किया जाए तो उसका दशांश होम करना चाहिए। जिसमें चने की दाल, तिल एवं शुद्ध घी का प्रयोग करें एवं समिधा में आम की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं। मंत्र जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर करना चाहिए।

Monday, April 04, 2011

विक्रम संवत् 2068 शुभ हो। नव संवत्‍सर की शुभकामनाएँ

भारतीय नव वर्ष 2068 'संवत्‍सर' पर आप सब को बहुत बहुत बधाई। नववर्ष सुख समृद्धि और वैभव ले कर आपके भविष्‍य, आपके विचारों और आपके परिवार, मित्रों और सहयोगियों के साथ आपको उच्‍च से उच्‍चतम स्‍तर तक पहुँचाये। आप पर्यावरण, वृक्षारोपण, महँगाई नियंत्रण और जनजीवन सुरक्षा के लिए प्रयत्‍नशील रहें। मनोबल बढ़ायें, बच्‍चों को नई दिशाएँ देने के लिए पहल करें। राष्‍ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्‍दी के चहुँमुखी प्रचार प्रसार के लिए आगे आयें। कुछ कर गुजरें, ताकि आप देश के लिए योगदान में स्‍वयं संतोष अनुभव करें और भावी पीढ़ी आपका अनुसरण, अनुकरण करे। आप उनका प्रतिनिधित्‍व करें। कोई माँ के पेट से सीख कर नहीं आता। हम अपने चारों ओर सृजित वातावरण, पारिवारिक परिस्थितियों और सहयोगियों के साथ सत्‍संग, समागम और विचारों से ही अपना और अपने परिवार का विकासोन्‍मुख वातावरण सृजित करते हैं। इसलिए इस नववर्ष पर कुछ नया कर गुजरें और मुझे लिखें कि आपने पिछले वर्ष क्‍या नया किया? कितना संतोष मिला? इस वर्ष क्‍या कुछ नया करने का विचार है? अगले नव वर्ष पर फि‍र मिलेंगे। पुन: शभकामनाएँ।

Tuesday, March 01, 2011

12 ज्योतिर्लिंग


 12 ज्योतिर्लिंग  



1          Somnath in Saurashtra (Kathiawad), Gujarat 
2          Mallikarjun in Shrishailam  or Srisailam AP 
3          Mahakal in Ujjain OR Mahakalaswar at Ujjain, MP state.
4          Omkar in Mammaleshwaram  (at Omkareshwar on the river Narmada, MP)
5          Vaijnath in Parli (Vaidyanath at Deogarh, Bihar)
6          Bhima Shankar in Dakini northwest of Poona, in Dhakini, Maharashtra
7          Rameshwaram in Setubandha, TamilNadu8          Nagesh, Naganath/Nageshwar, in Darukavana, Maharaashtra 
9          Vishweshwar/ Viswanath in Banaras/Varanasi , UP10         Trimbakeshwar near Nasik on the banks of river Gautami/Godavari , Maharashtra11         Kedarnath/Kedareshwar in Utterkhand Himalayas, UP 
12         Ghurmeshwar in Shivalaya OR Grineshwar in Visalakam, near Ellora caves, Mah


सोमनाथ 


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मल्लिकर्जुना  













महाकालेश्वर 




ओमकारेश्वर  / ममलेश्वर 







 




बैद्यनाथ  धाम  / वैद्यनाथम 



 








 



भीमसंकारा 


 






















रामेश्वरम 





नागनाथ  / नागेश्वर 



 

विश्वनाथ 


















त्र्यम्बकेश्वर 


 








केदारनाथ 
 













ग्रीनेश्वर 

































Tuesday, February 08, 2011

वसंत पंचमी

वसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।

प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
बसन्त पंचमी के दिन माता शारदा का पूजन Puja of Goddess Saraswati माता शारदा के पूजन के लिये भी बसंत पंचमी का दिन विशेष शुभ रहता है. इस दिन 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को पीले-मीठे चावलों का भोजन कराया जाता है. तथा उनकी पूजा की जाती है. मां शारदा और कन्याओं का पूजन करने के बाद पीले रंग के वस्त्र और आभूषण कुमारी कन्याओ, निर्धनों व विप्रों को दिने से परिवार में ज्ञान, कला व सुख -शान्ति की वृ्द्धि होती है. इसके अतिरिक्त इस दिन पीले फूलों से शिवलिंग की पूजा करना भी विशेष शुभ माना जाता है