कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देश के कई भागों में पुत्रवती महिलाएं व्रत रखती हैं। इस व्रत को अहोई अष्टमी व्रत के नाम से जाना जाता है। अहोई शब्द अनहोनी का अपभ्रंश है।
मान्यता है कि इस व्रत से संतान की आयु लंबी होती है और उन्हें किसी अनहोनी का सामना नहीं करना पड़ता है। अहोई अष्टमी की कथा के अनुसार एक साहूकार की बहुएं दीपावली में घर की मरम्मत के लिए वन में मिट्टी लाने जाती है।
मिट्टी काटते समय छोटी बहू के हाथों अनजाने में कांटे वाले पशु साही के बच्चे की मृत्यु हो जाती है। नाराज साही श्राप देती है, जिससे छोटी बहू के सभी बच्चे मर जाते हैं। बच्चों को फिर से जीवित करने के लिए साहूकार की बहू साही और भगवती की पूजा करती है। इससे छोटी बहू की मृत संतान फिर से जीवित हो जाती है।
पुत्रवती माताएं साहूकार की छोटी बहू के समान अपने पुत्र की लंबी आयु और अनहोनी से रक्षा के लिए यह व्रत रखती हैं और साही माता एवं भगवती से प्रार्थना करती हैं कि उनके पुत्र दीर्घायु हों।
मान्यता है कि इस व्रत से संतान की आयु लंबी होती है और उन्हें किसी अनहोनी का सामना नहीं करना पड़ता है। अहोई अष्टमी की कथा के अनुसार एक साहूकार की बहुएं दीपावली में घर की मरम्मत के लिए वन में मिट्टी लाने जाती है।
मिट्टी काटते समय छोटी बहू के हाथों अनजाने में कांटे वाले पशु साही के बच्चे की मृत्यु हो जाती है। नाराज साही श्राप देती है, जिससे छोटी बहू के सभी बच्चे मर जाते हैं। बच्चों को फिर से जीवित करने के लिए साहूकार की बहू साही और भगवती की पूजा करती है। इससे छोटी बहू की मृत संतान फिर से जीवित हो जाती है।
पुत्रवती माताएं साहूकार की छोटी बहू के समान अपने पुत्र की लंबी आयु और अनहोनी से रक्षा के लिए यह व्रत रखती हैं और साही माता एवं भगवती से प्रार्थना करती हैं कि उनके पुत्र दीर्घायु हों।
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