Sunday, June 06, 2010

देवी अन्नपूर्णा







देवी अन्नपूर्णा प्रसिद्ध लोकदेवी हैं। पुराण-तंत्र ग्रंथों में देवी का लोकदेवी स्वरूप देखा जा सकता है। भविष्योत्तर पुराण में अन्नपूर्णा की व्रतकथा भी वर्णित है। अन्नपूर्णा देवी का प्राचीन स्वरूप वेद-पुराणों में भी है। अथर्ववेद के भूमिसूक्त में वैदिक ऋषि अपने को माता भूमि का पुत्र बताते हैं- माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:। 

वैदिक सूक्त में भूमि को विश्वंभरा यानि विश्व का भरण-पोषण करने वाली, वसुधा मतलब धन-धान्य धारण करने वाली, धान्य-पौध धारण करती हुई और सुवर्ण के आभूषण तथा वस्त्रों से शोभायमान बताई है। अत:हम कहते हैं 'बहुरत्ना वसुंधरा'। इस वैदिक भूमि माता में देवी अन्नपूर्णा का प्राचीन स्वरूप देखा जा सकता है। धन-धान्य से संपन्न भूमि माता का जीता-जागता स्वरूप ही देवी अन्नपूर्णा है। वह तो भूमि से उत्पन्न अन्न की, कृषि की अधिष्ठात्री देवी हैं। आदि शंकराचार्य ने देवी अन्नपूर्णा के स्वरूप-महिमा का वर्णन करने वाला 'अन्नपूर्णास्तोत्र' रचा है। शंकराचार्य की दृष्टि से माता अन्नपूर्णा तो नित्य आनंद, अन्न, ऐश्वर्य, वरदान और आश्रित को अभय प्रदान करने वाली हैं। निम्र मंत्र से अन्नपूर्णा की स्तुति की जाती है-



नमो मुक्तिप्रदे देवि अन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते

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