Sunday, May 23, 2010

दुर्गा जी का दशाक्षर मंत्र

दुर्गा जी की सिद्ध साधनाओं में एक यह भी बहुत प्रसिद्ध और प्रभावशाली मंत्र साधना है। दस अक्षरों से रचित होने के कारण दशाक्षर मंत्र कहलाता है।
मंत्र - ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि ठ: ठ: स्वाहा।
साधना विधि - किसी भी शुभ मुहूर्त में यह साधना आरंभ की जा सकती है। दुर्गा जी की प्रतिमा, या चित्र का पूजन करके नित्य इस मंत्र का जप सिद्धि के लिये एक लाख पच्चीस हजार 40 दिन में है। परन्तु नवरात्रों में 9 दिन में 24,000 मंत्र तथा ग्रहण काल में 40 माला का जप ही पर्याप्त होता है। जप से पहले दुर्गा जी की पंचोपचार, अष्टोपचार अथवा षोडोशोपचार पूजा करके, अंगन्यास, करन्यास, हृदयादिन्यास करना चाहिये। आज के युग में व्यक्ति इतना स्थिर और क्लांत है कि वह शास्त्रीय पद्धति से जटिल साधनाएं नहीं कर सकता। ऐसी स्थिति में साधक श्रद्धा भाव से, देवी जी की साधना को निर्विघ्ता, सुरक्षा, शांति और सफलता प्राप्ति के लिये अपनी भाषा में मौन निवेदन कर ले, तो भी अवश्य कल्याण होता है। परन्तु सविधि जप अनुष्ठान उत्तम होगा।
करन्यास -
ॐ दुर्गे अंगुष्ठाभ्यां नम:।
(मंत्र पढ़ते हुये अंगुष्ठ का स्पर्श करें।)
ॐ दुर्गे तर्जनीभ्यां स्वाहा।
(मंत्र पढ़ते हुये तर्जनी का स्पर्श करें।)
ॐ दुर्गे मध्यमाभ्यां वौषट्।
(मंत्र पढ़ते हुए मध्यमा का स्पर्श करें।)
ॐ भूरक्षिणी अनामिकाभ्यां हुँ।
(मंत्र पढ़ते हुए अनामिका का स्पर्श करें।)
ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणी अस्त्राय फट्।
(मंत्र पढ़ते हुये कनिष्ठिका का स्पर्श करें।)
शास्त्रीय पद्धति यह है कि प्रत्येक साधन में सभी न्यास अंगन्यास, कर हृदय आदि न्यास अवश्य किये जायें। यह नियमावली इतनी जटिल है कि सामान्य गृहस्थ जो प्राय: अशिक्षित या अल्प शिक्षित होता है। यह न्यासादि की बाध्यता को पूरी नहीं कर सकता।
गुरु तथा देवी के चरणों में अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित कर दे और क्रियाओं को न कर मानसिक रूप से क्षमा प्रार्थना करते हुए जप की प्रक्रिया आरंभ करे। अर्थात यदि अपने शब्दों में देवता की स्तुति करके, निर्विघ् साधना के लिये प्रार्थना की ली जाये और शुद्ध पवित्र स्थान पर एकाग्रचित बैठकर मंत्र, का जप किया जा सके, तो भी साधना फलीभूत होती है। वस्तुत: देवता श्रद्धा ही चाहते हैं शेष सभी उपचारों का उनकी दृष्टि में कोई महत्व नहीं। वास्तव में न्यासादि शारीरिक क्रियायें हैं - यह योग साधन के संक्षिप्त रूप हैं, इनसे शारीरिक व मानसिक संतुलन और शुचिता की स्थिति बनी रहती है।
इस दुर्गा साधना में प्रयुक्त होने वाले श्री सिद्ध दुर्गा यंत्र को दुर्गा जी के चित्र या प्रतिमा के साथ स्थापित कर लें और फिर रक्त चंदन की माला से मंत्र जप आरंभ करे दें। मंत्र जप की समाप्ति पर पुन: दुर्गा स्तुति अथवा श्री दुर्गायै नम: का ग्यारह बार जप करके प्रणाम करना चाहिये।

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