मोक्ष प्राप्ति के लिए पंचश्लोकिगणेशपुराणम्
॥ पंचश्लोकिगणेशपुराणम् ॥
श्रीविघ्नेशपुराणसारमुदितं व्यासाय धात्रा पुरातत्खण्डं प्रथमं महागणपतेश्चोपासनाख्यं यथा।
संहर्तुं त्रिपुरं शिवेन गणपस्यादौ कृतं पूजनंकर्तुं सृष्टिमिमां स्तुतः स विधिना व्यासेन बुद्धयाप्तये॥
संकष्टयाश्च विनायकस्य च मनोः स्थानस्य तीर्थस्य वैदूर्वाणां महिमेति भक्तिचरितंतत्पार्थिवस्यार्चनम्।
तेभ्यो यैर्यदभीप्सितं गणपतिस्तत्तत्प्रतुष्टो ददौताः सर्वा न समर्थ एव कथितुं ब्रह्मा कुतो मानवः॥
क्रीडाकाण्डमथो वदे कृतयुगे श्वेतच्छविः काश्यपः।सिंहांकः स विनायको दशभुजो भूत्वाथ काशीं ययौ।
हत्वा तत्र नरान्तकं तदनुजं देवान्तकं दानवंत्रेतायां शिवनन्दनो रसभुजो जातो मयूरध्वजः॥
हत्वा तं कमलासुरं च सगणं सिन्धु महादैत्यपंपश्चात् सिद्धिमती सुते कमलजस्तस्मै च ज्ञानं ददौ।
द्वापारे तु गजाननो युगभुजो गौरीसुतः सिन्दुरंसम्मर्द्य स्वकरेण तं निजमुखे चाखुध्वजो लिप्तवान्॥
गीताया उपदेश एव हि कृतो राज्ञे वरेण्याय वैतुष्टायाथ च धूम्रकेतुरभिधो विप्रः सधर्मधिकः।
अश्वांको द्विभुजो सितो गणपतिर्म्लेच्छान्तकः स्वर्णदःक्रीडाकाण्डमिदं गणस्य हरिणा प्रोक्तं विधात्रे पुरा॥
एतच्छ्लोकसुपंचकं प्रतिदिनं भक्त्या पठेद्यः पुमान्निर्वाणं परमं व्रजेत् स सकलान् भुक्त्वा सुभोगानपि।
॥ इति श्रीपंचश्लोकिगणेशपुराणम् ॥
पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने व्यास को श्री विघ्नेश (गणेश) पुराण का सारतत्व बताया था। वह महागणपति का उपासनासंज्ञक प्रथम खण्ड है। भगवान शिव ने पहले त्रिपुर का संहार करने के लिए गणपति का पूजन किया। फिर ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना करने के लिए उनकी विधिवत स्तुति की। तत्पश्चात व्यास ने बुद्धि की प्राप्ति के लिए उनका स्तवन किया।संकष्टी देवी की, गणेश की, उनके मंत्र की, स्थान की, तीर्थ की और दूर्वा की महिमा यह भक्तिचरित है। उनके पार्थिव विग्रह का पूजन भी भक्तिचर्या ही है। उन भक्तिचर्या करने वाले पुरुषों में से जिन-जिन ने जिस-जिस वस्तु को पाने की इच्छा की, संतुष्ट हुए गणपति ने वह-वह वस्तु उन्हें दी। उन सबका वर्णन करने में ब्रह्माजी भी समर्थ नहीं हैं, फिर मनुष्य की तो बात ही क्या।'क्रीडाकाण्ड' का वर्णन- सत्ययुग में दस भुजाओं से युक्त श्वेत कान्तिमान कश्यप पुत्र सिंहध्वज महोत्कट विनायक काशी में गए। वहां नरान्तक और उसके छोटे भाई देवान्तक नामक दानव को मारकर त्रेता में वे षड्बाहु शिवनन्दन मयूर ध्वज के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने कमलासुर को तथा महादैत्यपति सिन्धु को उसके गणों सहित मार डाला। तत्पश्चात ब्रह्माजी ने सिद्धि और बुद्धि नामक दो कन्याएं उन्हें दीं और ज्ञान भी प्रदान किया।द्वापर युग में गौरीपुत्र गजानन दो भुजाओं से युक्त हुए। उन्होंने अपने हाथ से सिन्दूरासुर का मर्दन करके उसे अपने मुख पर पोत लिया। उनकी ध्वजा में मूषक का चिह्न था। उन्होंने संतुष्ट राजा वरेण्य को गणेश गीता का उपदेश किया। फिर वे धूम्रकेतु नाम से प्रसिद्ध धर्मयुक्त धन वाले ब्राह्मण होंगे। उस समय उनके ध्वज का चिह्न अश्व होगा। उनके दो भुजाएं होंगी। वे गौरवर्ण के गणपति म्लेच्छों का अन्त करने वाले और सुवर्ण के दाता होंगे। गणपति के इस 'क्रीडाकाण्ड' का वर्णन पूर्वकाल में भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से किया था।जो मनुष्य प्रतिदिन भक्तिभाव से इन पांच श्लोकों का पाठ करेगा, वह समस्त उत्तम भोगों का उपभोग करके अन्त में परम निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त होगा।
॥ इस प्रकार 'पंचश्लोकी गणेशपुराण' पूरा हुआ ॥
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